‘यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः’ हम गुरु का चयन नहीं करते हैं; गुरु हमारा चयन करता है, गुरु हमें अपनाता है। परमात्मा ही हमारा वरण करता है । -भाई श्री संतोष सागर जी
‘यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः’
हम गुरु का चयन नहीं करते हैं;
गुरु हमारा चयन करता है, गुरु हमें अपनाता है। परमात्मा ही हमारा वरण करता है
-भाई श्री संतोष सागर जी
Yame vaish vrunute tena labhyah’.
We do not select the Guru;
The Guru selects us, he makes us his very own. It is the Lord who chooses us to meet Him -‘ (Kathopanishad)
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